Rohit Sahu

Journalist

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अमीरों की रेलगाड़ी और गरीबों की बैलगाड़ी, सवालों के घेरे में भारतीय रेलवे?

प्राइवेट ट्रेन अपनी मर्जी से ले सकेंगी किराया। सरकार ने निजी कम्पनियों को इसकी खुली छूट दी है। कम्पनियों को किसी स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होगी। मनचाहा किराया वसूलने के लिए निजी कम्पनियों को कोर्ट में चुनौती न दी जा सके, इसके लिए सरकार कैबिनेट से जल्द मंजूरी दिलाने की जद्दोजहत में लग गई है। गोरखपुर से लोकमान्य तिलक टर्मिनस के बीच चलने वाली ट्रेन कुशीनगर एक्सप्रेस में आम दिनों के सफर में इतनी भीड़ रहती है कि पैर रखना भी मुश्किल होता है। यह भीड़ सिर्फ जनरल बोगी में नहीं रहती। ट्रेन के स्लीपर कोच का आलम भी कुछ इस तरह ही रहता है। भीड़ का उदाहरण इसलिए दिया है, ताकि आप समझ सकें की भारत में ट्रेनों की उपयोगिता गरीब आदमी के लिए क्या मायने रखती है। भारतीय रेलवे गरीबों के लिए यात्रा का सबसे आसान और किफायती माध्यम है। दुनिया के चौथे सबसे बड़े रेल नेटवर्क का तमगा भारतीय रेल को हासिल है। हमारा नेटवर्क लगभग 67,500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। हालाँकि इसकी बुनियादी सुविधाओं पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। ट्रेन यहाँ सामान्य दिनों में भी 10 घण्टे की देरी से चलती है। बारिश या सर्दी के मौसम में रेलवे की घड़ी कोहरे से ढक जाती है, आलम यह होता है कि ट्रेन 2 दिन देरी से पहुँचती हैं। इन सब आधारभूत सुविधाओं के नाकाफ़ी होने के बावजूद, भारतीय मजदूर रेलवे की इस बात से खुश रहता है कि वह कम किराया लेकर उन्हें देश के किसी भी कोने में पहुँचा देती है। रेलवे को निजी हाथों में सौंपकर सरकार ने इसी विश्वास पर हथौड़े से प्रहार किया है। किसान, मजदूर, ग़रीबी में जीवन जीने वाले लोग, देश के किसी भी हिस्से में आने जाने के लिए रेलवे को ही चुनते हैं। उसके पास दूसरे यातायात का माध्यम उपलब्ध तो है, किंतु वह बहुत महेंगे हैं। फसल कटाई के समय बड़ी संख्या में मज़दूर और किसान पंजाब, छतीसगढ़, जैसे राज्यों कि तरफ निकलते हैं और उनका मुख्य साधन रेलवे होता है। गरीब,मजदूर वर्ग जो रोज कमाता है और रोज खाता है उनके लिए महंगा किराया दे पाना मुश्किल है। गरीब मजदूरों को रेलवे किस तरह प्रभावित करती है, यह हम कोरोना वायरस के कारण हुए लॉक डाउन के समय देख चुके हैं। ट्रेनों के न चलने के कारण गरीब मजदूर पैदल चलने को विवश हो गए थे। 67 हजार किलोमीटर लंबे रेलमार्गों के गुरुर पर मजदूरों के छालों से भरे पैर रौंदते हुए चले गए थे। सरकार का दावा है कि भारत 109 रूटों पर सिर्फ 151 ट्रेन ही प्राइवेट चलेंगी। प्रश्न है कि निजी रेलवे किसानों, मजदूरों ,गरीब सब्जी वालों का ध्यान रखेगी क्या ? जबाब - नहीं । निजी रेलवे व्यवस्था सिर्फ उनका ध्यान रखेंगी, उन्हें सुविधाएँ देंगी जो इसके लिए मोटी रकम चुकायेंगे। रेलवे को निजी हाथों में सौंपने को लेकर उठ रहे सवालों पर रेलवे ने साफ कर दिया है कि किराए समन्धी नियम कम्पनी खुद बनाएं। दुर्घटना बीमा सम्बन्धी नियमों और 160 कि स्पीड पर जबाब आना अभी शेष है। रेल मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि निजी कम्पनियां अपने अनुसार किराया वसूल कर सकेंगी इसके लिए उन्हें किसी अप्रूवल की आवश्यकता नहीं है। साथ ही कोई इस निर्णय को कोर्ट में चैलेंज न कर सके इसके लिए इस फैसले पर कैबिनेट की मंजूरी भी जल्द मिल जाएगी। जानकारों का मानना है कि निजी कम्पनियां अपने लाभ के लिए काम करेंगी ना की रेलवे को दुरुस्त करने के लिए। सरकार के सभी तर्क वहां धरे रह जाएंगे जब किराए की वजह से मजदूर निजी रेलवे में सफर नहीं कर पाएगा। निजी रेल और गरीब मजदूर दोनों यहाँ विरोधाभाष हैं, क्योंकि निजी रेल की सभी सुविधाएं सिर्फ सम्पन्न वर्ग के लोगों के लिए हैं। सुविधाओं की बेहतरी का प्रयोग भारतीय रेलवे आईआरटीसी के साथ भी कर चुकी। आईआरटीसी की और से मिलने वाली सुविधाओं के पर भारतीय जनमानस का रुख मिलाजुला रहता है। खाने पीने के मामले में आईआरटीसी को हमेशा आलोचना ही मिली है। सरकारी ट्रेन में गरीब के लिए जगह तो मिल जाएगी, लेकिन 151 ट्रेन के आगे भारतीय रेलवे की 13000 रेलगाड़ियां चीटी की तरह रेंगने लगेंगी। सरकारी ट्रेनों को कहीं वीराने में रोक दिया जाएगा और सिग्नल पहले निजी ट्रेनों को दिए जाएंगे ताकि निजी रेलवे में सफर कर रहे अमीर लोग अपने मुकाम पर समय से पहुँच जाएँ। खबर यह भी है कि रेलवे स्टेशनों का संचालन भी प्राइवेट कम्पनियों को मिलने जा रहा है। ऐसे में यात्रीगण कृपया ध्यान दें जब भी किसी निजी ट्रेन और निजी स्टेशन से यात्रा करने का मन हो तो जेब भारी रखें। ट्रेनों,स्टेशन और पार्किंग का जिम्मा निजी हाथों को सौंपने के बाद भारत सरकार को यह आशा है कि 35 साल बाद निजी कम्पनियां सर्व-सुविधाओं के साथ भारत सरकार को रेलवे सम्पदा वापस कर देंगी। जिस तरह भारतीय रेलवे ने भारत के लोगों की सेवा की है, उसी तरह समाज सेवा की उम्मीद सरकार निजी कम्पनियों से कर रही है। हालाँकि रेलवे घाटे में जा रही थी सरकार कंगाल हो गयी थी और अब ज्यादा देर सेवा नहीं कर सकती, इसलिए सरकार ने भारतीय यातायात की सबसे बड़ी सम्पदा बेच डाली। गरीबों और मजदूरों से भरी हुई 13000 ट्रेनें सिर्फ 109 रूट पर चलने वाली 151 ट्रेनों से पीछे रह जाएंगी। कम पैसे वालों को बैलगाड़ी की सफर की तरह सुविधाएँ मिलेंगी और पैसे वालों को आधुनिक रेलवे की बेहतरीन सुविधाएँ। हम उस विरासत पर अवश्य गौरव कर सकते है जहाँ रेल हादसे की एक घटना पर रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री इस्तीफा दे देते हैं। दूसरी घटना में शास्त्री जी ने गरीब-अमीर और आम-खास के फर्क को मिटाने के लिए रेल मंत्री रहते हुए बंबई जाते वक्त जब उन्हें फर्स्ट क्लास डिब्बे में बैठाया गया उन्होंने महसूस किया कि डिब्बे में ठंडक है। शास्त्री जी ने अपने पीए कैलाश बाबू से कहा बाहर इतनी गर्मी है और यहाँ ठंडक महसूस हो रही है। पीए ने जबाब दिया इस डिब्बे में कूलर लगाया गया है,शास्त्री जी हैरानी और तेजी में कैलाश बाबू को जबाब देते हैं कि किससे पूछ कर डिब्बे में कूलर लगाया गया है। क्या रेल में बैठे सभी यात्रियों के लिए कूलर लगाया गया है, अगले स्टेशन पर इसको हटवा देना कायदे से तो मुझे भी थर्ड क्लास में जाना चाहिए था। अब वर्तमान सरकारें उस विरासत को तो आगे नहीं बड़ा सकतीं कम से कम गरीब को उसके जीवन में की जाने वाली थोड़ी बहुत यात्राओं में सुगमता दिला दें।

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